शिल्पकला की अद्वितीयता और सांस्कृतिक धरोहर का संरक्षण
कोण्डागांव/नारायणपुर गांव छत्तीसगढ़ के कोण्डागांव जिले में स्थित है और यह ढोकरा कला, टेराकोटा शिल्प और लकड़ी की शिल्पकला के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ के कारीगर अपनी पारंपरिक तकनीकों का उपयोग करते हुए अद्वितीय शिल्प का निर्माण करते हैं, जो पीढ़ियों से चले आ रहे हैं।
प्रमुख शिल्प:
- ढोकरा कला:
- यह एक प्राचीन धातु शिल्प है, जिसमें ‘लॉस्ट वैक्स कास्टिंग’ तकनीक का उपयोग होता है।
- कारीगर पहले मोम का ढांचा बनाते हैं, फिर उसे मिट्टी से ढककर गर्म करते हैं, जिससे मोम पिघलकर एक खाली ढांचा बनता है।
- इस खाली स्थान में पीतल या अन्य धातु डालकर ठंडा किया जाता है।
- उत्पादों में हाथी, घोड़े, देवी-देवताओं की मूर्तियाँ, सजावटी बर्तन, और गहनों का निर्माण होता है।
- टेराकोटा शिल्प:
- नारायणपुर के कारीगर मिट्टी से बने बर्तनों, मूर्तियों और सजावटी सामान का निर्माण करते हैं।
- यह शिल्प आदिवासी समाज में प्रमुख भूमिका निभाता है और इसमें पारंपरिक एवं समकालीन डिजाइनों का संयोजन होता है।
- लकड़ी की शिल्पकला:
- यहाँ के कारीगर प्राकृतिक लकड़ी का उपयोग करके सजावटी वस्तुएँ बनाते हैं।
- इन उत्पादों पर जटिल नक्काशी होती है, जिसमें आदिवासी संस्कृति, वन्य जीवन और देवी-देवताओं की आकृतियाँ शामिल होती हैं।
प्रसिद्धि का कारण:
नारायणपुर के शिल्पकला उत्पाद न केवल भारत में, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी अत्यंत लोकप्रिय हैं। ये उत्पाद संग्रहकर्ताओं और शिल्प प्रेमियों द्वारा सराहे जाते हैं और विभिन्न देशों में निर्यात किए जाते हैं।
सांस्कृतिक महत्व और पर्यटन
नारायणपुर गांव में आने वाले पर्यटकों को आदिवासी कला और संस्कृति की गहरी झलक देखने को मिलती है। यहाँ की पारंपरिक शिल्पकला का अध्ययन करने के लिए कई कला प्रेमी और शोधकर्ता आते हैं। नारायणपुर में बने हस्तशिल्प उत्पाद छत्तीसगढ़ राज्य के पर्यटन और आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं। राज्य सरकार स्थानीय कारीगरों को प्रोत्साहित करने के लिए विभिन्न योजनाएँ चला रही है ताकि वे अपनी पारंपरिक कला को संरक्षित रख सकें और अपनी जीविका कमा सकें।