छत्तीसगढ़ के घने जंगलों वाले क्षेत्र, विशेष रूप से बस्तर और सरगुजा, देश के औषधीय निर्यात केंद्र के रूप में उभर रहे हैं। यहाँ प्राकृतिक औषधीय पौधों की उपज बढ़ रही है, जिसमें मुख्य रूप से हर्र, बहेड़ा, आंवला, गिलोय और सतावर शामिल हैं। इन पौधों की आयुर्वेदिक उद्योग और हर्बल उत्पादों के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मांग है। सरकार के सहयोग से इन पौधों का संग्रहण और उत्पादन यहाँ की आदिवासी और स्थानीय जनजातियों के लिए आय का एक महत्वपूर्ण स्रोत बन गया है।
सरकार की विशेष योजनाएं और स्थानीय विकास:– छत्तीसगढ़ सरकार ने वन विभाग के सहयोग से औषधीय पौधों की खेती और संरक्षण के लिए विशेष योजनाएं लागू की हैं। इन योजनाओं में किसानों को प्रशिक्षण, वित्तीय सहायता, और निर्यात प्रोत्साहन शामिल हैं। इसके परिणामस्वरूप, इन जिलों के आदिवासी समुदायों को न केवल आर्थिक लाभ हुआ है, बल्कि उन्हें आत्मनिर्भर बनने का अवसर भी मिला है। राज्य सरकार का लक्ष्य है कि यह क्षेत्र अगले कुछ वर्षों में औषधीय निर्यात में शीर्ष स्थान पर आए।**औषधीय पौधों का उपयोग और निर्यात:** ये औषधीय पौधे आयुर्वेदिक दवाओं, हर्बल सप्लीमेंट्स, और प्राकृतिक उत्पादों के निर्माण में उपयोग किए जाते हैं, जो स्वास्थ्य और प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में सहायक होते हैं। अंतरराष्ट्रीय बाजार में इन उत्पादों की मांग निरंतर बढ़ रही है, जिससे इन क्षेत्रों के किसान और आदिवासी समुदाय लाभान्वित हो रहे हैं।
भविष्य की संभावनाएं – विशेषज्ञों का मानना है कि राज्य सरकार द्वारा तकनीकी सहायता और निर्यात को प्रोत्साहन मिलने से यह क्षेत्र जल्द ही औषधीय निर्यात में एक प्रमुख हब बन सकता है। इससे न केवल राज्य की अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलेगा, बल्कि स्थानीय समुदायों का जीवन स्तर भी बेहतर होगा।